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22 Jun 2021 · 1 min read

संग मेला कोई नहीं लाया।

संग मेला कोई नहीं लाया।
मुझ्को तन्हाइयों ने सिखलाया।

मैं कभी था नहीं बुरा इतना।
मुझको मेरी हवस ने फुसलाया।

मैं किसी दूसरे पते पर था।
जब भी ख़त का जबाव है आया।

पत्तियां कम नहीं शजर में पर।
ज़मीं को मिल नहीं रहा साया।

दर्द के इम्तेहान चालू हैं।
पर नतीजा कोई नहीं आया।

मैंने फौरन उसे सहेजा है।
दामने दर्द जब भी लहराया।

बेसबब हँसना गर नहीं आता।
तू “नज़र” महफ़िलों में क्यूं आया।

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