कविता : संग तुम्हारा अद्भुत गहना
#संग तुम्हारा अद्भुत गहना
धवरी धूप सरिस मन तेरा।
लूट लिया जिसने मन मेरा।।
कोयल सम मधुर सरस वाणी।
प्रिया सदा से तू कल्याणी।।
कोमल कथन मुलायम चाहत।
गुणकारी तेरी हर आदत।।
नूतन पल्लव-सम हर चितवन।
संग तुम्हारा मानो चंदन।।
स्पर्श लगे है रेशम संगम।
मदमस्त करे कुंतल आलम।।
मृगनयनी है चंचल अंजुम।
मलयसमीर सरिस भरती दम।।
सानिध्य करे निर्मल पावन।
हृदय तुम्हारा पुष्पित आँगन।।
बोल तुम्हारे मानो सरग़म।
भाव तुम्हारे सबसे अनुपम।।
स्वर्ग-परी तुम सबसे सुंदर।
प्रेम जगाती आत्मा अंदर।।
आसान नहीं तुम बिन रहना।
संग तुम्हारा अद्भुत गहना।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना