संगीत
गीतिका
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बरसे ज्यों आनंद घन, ऐसा है संगीत।
बन जाता है जब कभी, मन का सच्चा मीत।
साज अनेकों संग हैं, ढोलक और मृदंग।
आदि काल से चल रही, भारत की यह रीत।
खो जाते जानें कहां, मन के गहरे भाव।
जब हम सुनते देखते, सहज उमड़ती प्रीत।
समय ठहर जाता कभी, होता यह आभास।
सबसे ऊपर भावना, नहीं हार है जीत।
नन्हें साधक देखिए, वाद्य बजाते खूब।
वक्त पता चलता नहीं,कब जाता है बीत।
कला संस्कृति में रचे, बसे हुए हैं लोग।
समरस भक्ति भावना, होती हमें प्रतीत।
सीखा करते धैर्य धर, गुरूजनों से शिष्य।
गायन और संगीत की, विद्या बहुत पुनीत।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य