संगीत
संगीत
वाद्य यन्त्र के साथ गीत हो।
दिव्य मधुर संगीत प्रीत हो।।
हो मनमोहक गायन वादन।
प्रिय लय ताल भव्य संपादन।।
रहे गीत में मंगल भावन।
अति मनहर नित लोक लुभावन।।
दृश्य मनोहर छटा निराली।
नृत्य करें खुशियाँ मतवाली।।
महफिल में शृंगार मनोरम।
नृत्यांगना दिखे अति अनुपम।।
भाव सिन्धु का जल हो निर्मल।
अंगड़ाई ले यौवन कोमल।।
देख दृश्य इंद्रासन डोले।
व्याकुल कामदेव रति बोलें।।
लज्जामुक्त सकल दर्शक हैं।
एकीकृत ज़न मन हर्षक हैं।।
देव लोक की यह माया है।
मधु संगीत दिव्य छाया है।।
थिरक थिरक कर नाच रहा मन।
सहज प्रफुल्लित अंग अंग तन।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।