संगदिल लोगों पे जाँ-निसार मत कीजिए
संगदिल लोगों पे जाँ-निसार मत कीजिए
इनकी ख़ातिर ज़िंदगी दुश्वार मत कीजिए
शहद की शीशी में ज़हर भी हो सकता है
मीठी-मीठी बातों पे ऐतबार मत कीजिए
इश्क़ बा-सफ़ा है अगर पर्दे में हो
सर-ए-बज़्म इश्क़ का इज़हार मत कीजिए
आप ख़ुद की नज़रों में गुनहगार हो जाएंगे
कोई क़सूर नहीं मिरा मुझे अग़्यार मत कीजिए
हर बात पे चुप रहना मुनासिब नहीं
ज़मीर को इतना भी लाचार मत कीजिए
कहीं ताब में मैं अपनी हद न भूल जाऊं
हद में रहिए जनाब हद पार मत कीजिए
नापाक न करिए इश्क़ को इश्क़ बहुत मुक़द्दस है
इक कीजिए सच्चा कीजिए दो-चार मत कीजिए
– त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’
कानपुर (उ.प्र.)