संक्रमण का दौर
सुधी पाठकों आप सब से मिल रहे प्रेम व उत्साह के लिए आभार।
इस कविता में संक्रमण से तात्पर्य जीवन में दुर्भाग्य के काल चक्र से है जो हमारे पूरे जीवन व व्यक्तित्व को संक्रमित करने का प्रयास करता है ।
संक्रमण का दौर है
रे मन संभलकर ही चलो ।
मन की धरती डोलेगी
जब काल बन अन्धड़ चलेगा,
तिनका संशय का उड़ेगा
और नयन में जा गिरेगा ।
अनुभवों की टोह ले आगे बढ़ो ।
संक्रमण का दौर है
रे मन संभलकर ही चलो ।
दुर्भाग्य से आक्रान्त हो
पुरुषार्थ सब छिप जायेंगे ।
कीच जो अविश्वास के
कुछ दाग देकर जायेंगे ।
याद रखो पांव में
जूते पहनकर ही चलो ।
संक्रमण का दौर है
रे मन संभलकर ही चलो ।
मन थकेगा
सबके अट्टहास से
सिसकेगा ये
लाञ्छनों की मार से ।
इन सभी से बचते तुम,
एकान्त में आगे बढ़ो ।
संक्रमण का दौर है
रे मन संभलकर ही चलो ।
तेरे अपने तुझमें कमियां
ढूंढ ढूंढ कर लायेगे ।
लाख तू निर्दोष हो,
सब दोष मढ़कर जायेंगे ।
स्व आचरण पर रह अडिग
शान्त मन आगे बढ़ो ।
संक्रमण का दौर है
रे मन संभलकर ही चलो ।