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18 Oct 2019 · 1 min read

संकल्प

प्रखर ज्योति की सुन्दर ज्वाला क्यों
धधकी बनकर दावानल?
स्वेद से सींचा जिस महीतल को क्यों
स्निग्ध है रक्त कणों से?

प्रेम से अंकुरित किया जिस उपवन को क्यों
शूल उगे हैं उसके अन्दर?

मधुर गीत क्यों आर्त्तनाद बन रहे ?
क्यों मानववेशी दानव मृत्यु ताण्डव कर रहे ?

क्यों सदाचार स्वप्निल हुआ ?
क्यों बना प्रत्यक्ष अनाचार ?
विश्व शान्ति क्यों भंग हो गयी ?
क्यों नही हुआ आतंक का प्रतिकार ?
द्वेष क्ले्श क्यों पनप रहा जनमानस में ?
क्यों न प्रेम उपज रहा मनस में ?
आवाहन देता यह समय कह रहा !

करो संकल्प ! निर्भीक बनो तुम !
करो धव्स्त मन्तव्य आतता के !
कमल बनो निर्मल रहो तुम !

Language: Hindi
205 Views
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