संकल्प
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“ठीक है वर्माजी, आपकी ज्वाईनिंग की सारी औपचारिकताएँ पूरी हो गई हैं। मैं इसे डी.ई.ओ. को फारवर्ड कर दूँगा। आप चाहें, तो आज ही क्लास ले सकते हैं या फिर घर जाकर आराम कर सकते हैं। कल से ड्यूटी शुरू कर सकते हैं।” प्राचार्य जी ने नवनियुक्त शिक्षक वर्माजी से कहा।
“सर, आपकी अनुमति हो, तो मैं आज से ही क्लास लेना चाहूँगा।” वर्माजी ने विनम्रतापूर्वक आग्रह किया।
“व्हाई नॉट। ये तो खुशी की बात है। शुभस्य शीघ्रम…।” प्राचार्य जी प्रसन्नता से बोले।
“सर, आपसे एक और रिक्वेस्ट है। आज मैं घर से अपने साथ एक पौधा भी लेकर आया हूँ। इसे मैं इस स्कूल प्राँगण में लगाना चाहता हूँ।” वर्माजी ने कहा।
“बिलकुल लगाइए। परंतु मैंने ऐसे कई पौधरोपण देखे हैं, जहाँ समुचित देखरेख के अभाव में हफ्ता-पंद्रह दिन बाद सब कुछ पूर्ववत हो जाता है।” प्राचार्य जी ने आशंका बताई।
“सर, आप निश्चिंत रहिए। जब तक मेरी पोस्टिंग इस स्कूल में रहेगी, मैं स्वयं इसकी देखभाल करूँगा। मैं इस विद्यालय के सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों को भी उनके नाम के साथ पट्टी लगाकर पौधरोपण कराने की कोशिश करूँगा। कुछ साल बाद आप स्वयं देखिएगा इस विद्यालय की कैसे कायापलट होगी।” वर्माजी अपनी ही रौ में बोले जा रहे थे।
प्राचार्य महोदय ने अपनी कुर्सी से उठकर उन्हें गले से लगा लिया। वर्माजी की आँखों में पल रहे विद्यालय की झलक उन्हें स्पष्ट दिख रही थी।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़