संकल्प
सोचो तुम इस दुनिया में
इस धरती का आधार
कष्ट स्वयं ही सह कर के
करती हम सब पर उपकार
सोचो तुम इस दुनिया में
इस मिट्टी का खेल
इससे ही चलती है
इस जीवन की रेल
मिट्टी से संसार बना मिट्टी ही सबकी जननी
मिट्टी की ही बनी है काया मिट्टी की ही है सब माया मिट्टी तन को संवारे हैं मिट्टी ही तन को बिगाड़े
मिट्टी का सब कुछ रेला यह मिट्टी का ही है खेला
सोचो तुम इस दुनिया में
इस प्रकृति चक्र का मर्म
प्रकृति कभी ना बिगड़े करो सदा ऐसा कर्म
वृक्ष लगाए बाग लगाए बूंद बूंद पानी हम बचाए
सोचो तुम इस दुनिया में
कितना कुछ हमने पाया
मानवता का दीप जलाया
चांद छुए ऐसा मार्ग बताया
पर रोक न पाए इस धरती पर प्रदूषण के अभिशाप को जनसंख्या के श्राप को
और मानवता के पाप को
मिले सभी हम प्रेम भाव से यह प्रतिज्ञा उठानी है
हम सबको अपनी यह धरती प्रदूषण मुक्त बनानी है
हम सबको अपनी यह धरती प्रदूषण मुक्त बनानी है