संकल्प प्रीत का
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देखा मैंने तुम्हें अंधेरे से निकलती हुई
प्यार बरबस दिल के अंदर भर गया।
तुम्हारे चेहरे पर डरा हुआ देखा तुम्हें
सारे हौसले देने तुम्हें दिल मचल गया।
तुम्हारे ललाट पर रेखाएँ मचल रही थी
उसे ऊर्ध्व करने हथेली सँभल गया।
तुम्हारे हाथों में कुदाल,कचिया देखा था
कूची और कलम बनाने, मैं ढल गया।
तुम्हें चाँद से छुप-छुप भागते देखा।
चाँदनी तेरे आंचल में समेटने आया।
तुम्हें खामोशी से इतना! चुप देखा था
मैं ओठों पर तेरे सारे छंद रखने आया।
प्यार खोजता हुआ भटक रहा था मैं
मकसद से भटका हुआ,काम-मोहित।
तुम मिली,मेरे प्यार को मिला मकसद
सारा कुछ इसपे करूंगा तिरोहित।
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अरुण कुमार प्रसाद