संकट मिटाने आओ भगवान
न जाने क्या अशुभ घड़ी थी,
महामारी मुँह खोल खड़ी थी।
मानव को छीना इस विष ने,
दुख न जाने सहा किस किसने।।1।।
सहनशक्ति की सीमा लांघी,
जीवन जीने की भिक्षा मांगी।
अपराधी हैं मानव ये सारे,
प्रकृति के निर्मम हत्यारे।।2।।
मोड़ समय ने कैसा मोड़ा,
न छोटे न बड़े को छोड़ा।
दानव के सब बन रहे ग्रास हैं,
प्रभु से सबकी यही आस है।।3।।
रोको प्रभु अब ये नरसंहार,
मानवता पर करो उपकार।
माना हम मानव अज्ञानी हैं,
घमण्ड में डूबे अभिमानी है।।4।।
किंतु है आपकी ही संतान,
कृपा करो दो क्षमा का दान।
अब तो आजाओ कृपानिधान,
संकट से निकालो सबके प्राण।।5।।
स्वरचित कविता
तरुण सिंह पवार
जिला सिवनी (मध्यप्रदेश)