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26 Jun 2021 · 1 min read

सँवरने लगी है मेरी जिंदगी भी।

चलो बुझ रही है मेरी तिश्नगी भी।
सँवरने लगी है मेरी जिंदगी भी।

कि इंसा के आगे भी झुकना है सीखा,
समझ आ गई हैं मुझे बंदगी भी।

पतित पावनी शिव की गंगा को देखो,
वो हर हर मिटा क्या सके गंदगी भी।

मैं उड़ता हूँ ऊंचे गगन में भी यारो,
मगर मेरे पैरों के नीचे जमीं भी।

ये दुशवारियां हैं बहुत कम न सोचो,
है प्रेमी मज़े की बहुत जिंदगी भी।

……✍️ प्रेमी

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