सँयुक्त परिवार संगठन की और एकल परिवार विघटन की और –
-सँयुक्त परिवार संगठन की और एकल परिवार विघटन की और –
भारतीय पुरातन सभ्यता व संस्कृति में सयुक्त परिवार प्रथा को सभ्यता व संस्कृति का अभिन्न अंग माना गया है,
पुरातन समय से चली आ रही यह गौरवशाली प्रथा वर्तमान समय मे एकल परिवार में परिवर्तित हो गई है ,
जिसके कई दुष्परिणाम ,दुष्प्रभाव भी समाज मे देखने को मिलते है ,
संयुक्त परिवार में परिवार संगठित रहता था जिसमे दादा दादी माता पिता भाई -बहन बेटे बेटी सभी साथ मे रहते थे तथा पारिवारिक संस्कारो से बंधे व जुड़े रहते थे,
बड़े बुजर्गो का मान -सम्मान परिवार में किया जाता था ,
सभी साथ मे बैठकर भोजन करते थे घर की महिलाएं घर की मान -मर्यादा का पालन करती थी,
परिवार के सभी सदस्यों में आपस मे प्रेमभाव था व बना रहता था,
वर्तमान समय मे एकल परिवार में ऐसा देखने को नही मिलता है,
एकल परिवार में पति -पत्नी व दो बच्चे रहते थे ,
पश्चिमी संस्कृति के अनुकरण व पाश्चात्य संस्कृति के शहरी वातावरण में बड़े -बुजर्गो का अनादर होता है ,
बड़े बुजुर्ग (बूढ़े माँ पिता)गाँव मे रहते है,
गाँवो में आज भी संस्कारित जीवन है भले ही कितना भी आधुनिकीकरण हो गया है वर्तमान में इसलिए ही तो महात्मा गाँधी ने कहा है कि भारत की आत्मा गाँवो में बसती है (निवास करती है),
अब एकल परिवार के दुष्प्रभाव व दुष्परिणाम की बात करे तो एकल परिवार शहरो में निवास करता है ,
शहर की चकाचौंध में अंधा हो जाता है,
शहरी व्यस्तम जीवन के कारण माता पिता बच्चो पर प्रभावी रूप से ध्यान नही दे पाते है ,
बच्चे अमूमन अकेले रहते है उनका अलग से शयनकक्ष होता है ,
अलग से शयनकक्ष होने व माता पिता की रोकटोक नही होने के कारण अधिकतर बच्चे गलत संगत में पड़ जाते है ,
कुछ बच्चो की गलत संगत से बच्चे नशे के आदि हो जाते है व अपराधी प्रवृत्ति के हो जाते है,
और अगर बुरी संगत का असर एक बार किसी भी बालक पर पड़ गया तो फिर उसे सही मार्ग पर लाना मुश्किल हो जाता है माता पिता के लिए,
इसलिए यह आवश्यक है कि बच्चों के लालन -पालन व संस्कारो व संस्कृति में संयुक्त परिवार की छवि बनी रहे ,
सयुंक्त परिवार ही सशक्त समाज का मूल है ,
इसलिए बड़े बुजुर्गों को चाहिए कि वे अपने विवाहित बच्चो को शहर में जरूर भेजे अर्थोपार्जन के लिए किन्तु अपने गाँवो व सयुंक्त परिवार की संस्कृति की अलख उनके ह्रदय में सदा जगाए रखे,
शहरी माता पिता को चाहिए की वो अपने पुत्र -पुत्रियों को सयुंक्त परिवार का महत्व बताए व संस्कारो व संस्कृति से जुड़े रखे,
अपने बच्चों का उचित मार्गदर्शन करें ,
कही गलत होने या दिखने पर उन्हें टोके जरूर ,
बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाए,
क्योंकि सयुक्त परिवार ही सशक्त समाज का मूल है,
भरत गहलोत
जालोर राजस्थान
सम्पर्क सूत्र -7742016184-