सँभल जा मानव…
स्वार्थ-ग्रसित हो सीने में प्रकृति के, नित खंजर तूने भोंके हैं ।
पग- पग चेतावनी देकर उसने, पग बढ़ने से तेरे रोके हैं ।
नामुमकिन है कुदरत को तेरा, वश में यूँ अपने कर पाना,
सँभल जा मानव, ये ख्वाब विजय के तेरी आँखों के धोखे हैं ।
-डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद