*षष्ठिपूर्ति (हास्य व्यंग्य)*
षष्ठिपूर्ति (हास्य व्यंग्य)
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सबसे ज्यादा आनन्द सच पूछो तो षष्ठिपूर्ति के कार्यक्रम में जाकर मिलता है। षष्ठिपूर्ति का मतलब है कि अगला आदमी जो सम्मानित हो रहा है ,उसके आयु के साठ वर्ष पूरे हो गए । साठ साल की उम्र पूरी होने को षष्ठिपूर्ति कहते हैं । लेकिन यह केवल अंको का खेल नहीं होता । इसके पीछे एक समारोह होता है , सम्मान और अभिनंदन की लंबी प्रक्रिया होती है ।
आमतौर पर जिसकी षष्ठिपूर्ति होनी होती है ,वह दो-चार महीने पहले से जुगाड़ करना शुरू करता है । कुछ परिचित व्यक्तियों को बताता है कि मैं साठ वर्ष का होने जा रहा हूँ। कुछ लोग अगर दिलचस्पी लेते हैं तो ठीक है अन्यथा लोगों की दिलचस्पी जगाई जाती है । फिर अंत में वह व्यक्ति एक कठोर निश्चय कर लेता है और अपने किसी खास आदमी को अपने पास बिठाकर उसके कान में बड़ी बेशर्मी से कह ही देता है कि तीन महीने बाद मैं साठ वर्ष का हो रहा हूँ, मेरी षष्ठिपूर्ति अवश्य मनाई जानी चाहिए। वह व्यक्ति समझ जाता है कि अब उसके कंधों पर कितनी भारी जिम्मेदारी आ चुकी है। इसके साथ ही कार्यक्रम की एक बड़ी रूपरेखा तैयार की जाती है। जिसको संयोजक बनाया जाता है अर्थात षष्ठिपूर्ति का कर्ता-धर्ता जो बनता है ,वह अगर समझदार हुआ तो पहला सवाल यह करता है कि भाई साहब ! बजट कितना है ? सारा संसार -सार बजट का है । जैसा बजट होगा वैसी ही षष्ठिपूर्ति हो जाती है । अच्छे बजट में रात्रिभोज होता है , मामूली बजट में मामूली चाय – नाश्ता ।
साठ वर्षीय महापुरुष बड़ी विनम्रतापूर्वक कृतज्ञता से सिर झुकाता है और फिर अपने विनम्र भाषण में यह कहता हैं कि मैं भला किस योग्य था ! यह तो आपकी उदारता और आत्मीयता है कि आपने मेरी षष्ठिपूर्ति मनाई और मुझे इस अवसर पर सम्मानित किया । सब लोग तालियाँ बजाते हैं और उसके बाद अनेक लोग साठ वर्ष के हो चुके उस महापुरुष की प्रशंसा में अपने – अपने उद्गार व्यक्त करते हैं। शॉल ओढ़ाई जाती है ,नारियल भेंट किया जाता है । एक सुंदर – सा सम्मान पत्र भी , जिसको 60 वर्षीय महापुरुष द्वारा स्वयं बड़े परिश्रम से लिखा गया होता है ,उन्हीं के हाथों में भेंट स्वरूप दे दिया जाता है अर्थात “त्वदीयं वस्तु गोविंदम् तुभ्यं समर्पयामि”- तुम्हारी ही वस्तु थी जो तुमने हमें तुम्हें सौंपने के लिए प्रदान की थी और अब हम उसे तुम्हें इस सार्वजनिक मंच पर सबके सामने सौंप रहे हैं । वह व्यक्ति नतमस्तक होकर अपने सम्मान पत्र को लेता है अर्थात ग्रहण करता है ।
साठ वर्षीय महापुरुष अपनी जेब थोड़ी हल्की करता है और इस प्रकार एक यादगार समारोह आयोजित हो जाता है । जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं होता । पैसे को हाथ का मैल समझो ! पैसे से फूल मालाएँ तथा सम्मान – पत्र प्राप्त होते हैं ,महापुरुषों में व्यक्ति का नाम लिख जाता है -यह क्या कम बड़ी बात है ! आप कल्पना करो कि पैसा जेब में रखा रह गया और गले में एक भी फूल माला न पड़ी , तब जिंदगी का अर्थ ही क्या है ?
खेद का विषय है कि आजकल षष्ठिपूर्तियों का मौसम नहीं रहा । चार लोग इकट्ठे भी नहीं होते । सच पूछो तो अब न तो उस टाइप के षष्ठिपूर्ति कराने वाले लोग रहे और न ही षष्ठिपूर्ति करने वाले लोग । जब तक अपनी षष्ठिपूर्ति करवाने के लिए समर्पित शानदार व्यक्तित्व नहीं होता और उसके जिम्मेदार वाले चार-छह चमचे नहीं होते, षष्ठिपूर्ति मजेदार नहीं होती ।
अहा ! क्या वातावरण हुआ करता था ! सुंदर मंच ,शानदार आयोजन ,फूलों की मालाओं से महकता हुआ वातावरण, साठ वर्षीय महापुरुष दूर से ही अभिनंदनीय जान पड़ते थे । समाज में नई पीढ़ी की जनरल नॉलेज ऐसे ही बढ़ा करती थी। अब सब खत्म हो गया।
पहले अधिकांश लोगों को षष्ठिपूर्ति के माध्यम से समाज में महापुरुषों का पता चलता रहता था ,जो अब बंद हो गया है। यह षष्ठिपूर्ति न होने का एक बहुत बड़ा दोष मैं मानता हूँ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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