षड्यंत्र
इंसान इंसान के साथ तो
करता ही है षडयंत्र ,
मगर चीज़ें भी करती है ,
इंसानों के विरुद्ध षडयंत्र ।
कभी किसी ने न सोचा होगा ,
मगर यह कठोर सच है ।
अपने अनुभव से परखा हुआ ,
खुद पर गुजरा हुआ सच है ।
संभालो चाहे जितना इन्हें ,
रखो उचित स्थान पर चाहे ।
जरूरत के वक्त नहीं मिलेंगी ,
सर धुनों फिर जितना जी चाहे।
कितनी खीज/ संताप होता है ,
यह समस्या सबको पता है।
हम तो पीड़ित और सताए हुए ,
हमसे चूक हो गई यही बस खता है ।
यह ज़ालिम किसी कोने में छुपी ,
मजे ले रही होती है मुस्कुराकर ।
हम हो जाएं बीमार इनकी बला से ,
मजाल क्या खड़ी हो जाएं आकर ।
बिजली की चीजें जो थोड़ी देर ,
पहले खराब और बंद पड़ी थी ।
मैकेनिक को देखते ही ठीक हो गई ,
यह भी गहरी साजिश थीं।
अब तुम्हारा काम निकल गया ,
अब तो तुम जरूर नज़र आ जाओगे !.
इससे पहले तुम्हे धरती खा गई ,
या आसमा निगल गया कुछ बताओगे।
खुदा जाने ! यह क्या माजरा है ?
आपसी जलन कहूं या प्यार !
किसी एक के टूटने/ बिगड़ने का ,
सभी को हो जाता है अज़ार।
अच्छा ! गिरती है यह चीज़ें उन्हीं से ,
जिनके घुटनो / कमर में दर्द होता है।
कुछ मत पूछो ! मेरे दोस्तो !
बुढ़ापे में दुगना संताप होता है।
खैर ! जब तक है यह दुनिया ,
यह साजिशों का दौर चलता रहेगा।
इंसान मोहताज होगा जरूरतों का ,
तो चीजों का गुलाम भी बनता रहेगा ।