षड्यंत्रों की कमी नहीं है
मन का केवल भेद चाहिए
षड्यंत्रों की कमी नहीं है
चौसर पर हैं हम सब यारों
शकुनि पासा फेंक रहा है
कह द्रोपदी लाज की मारी
कलियुग आंखें सेंक रहा है
कहे क्या मन का दुर्योधन
षड्यंत्रों की कमी नहीं है।
दूं क्या परिचय तुमको
क्या मैं इतिहास सुनाऊं
नाम, पता, आयु, शिक्षा
संप्रति की आस जगाऊं
पड़े हैं सांसों पर ताले
षड्यंत्रों की कमी नहीं है।
इस बस्ती में अंगारों की
निंदा, छल, कपट खड़े हैं
आग, आग है हर सीने में
तन कर सभी तन खड़े हैं
रक्त सभी के खौल रहे हैं
षड्यंत्रों की कमी नहीं है।।
-सूर्यकांत द्विवेदी