श्वेत-श्याम के मायने
सब कुछ या तो श्वेत है या श्याम। फिर चाहे वह उजाले की श्वेत रौनक हो या घुप्प अँधेरे का श्याम वर्ण। जन्म निरा श्वेत है और मौत ठहरी श्याम, इनके बीच के सफर का ज़िन्दगी है नाम। दो धुरियां प्यार और घृणा क्रमशः श्वेत और श्याम है जिनका होना हमारे होने को वजह प्रदान करता है। या यूँ कहा जाये कि दुनिया की शुरुआत श्वेत है और अंत श्याम। बाकी बीच में होने वाली सभी घटनाएं यानि कि वर्ण पूरक हैं। ख़्वाबों की इस रंगीन दुनिया में यदि किसी चीज़ का स्थायित्व है तो वह है श्वेत-श्याम जीवन का। भांति-भांति के रंगों के दर्जे में गर कोई असर वास्तविक होने के बावजूद सौन्दर्यपूर्ण है, तो यह ताज श्वेत-श्याम के मत्थे शोभित है। श्वेत-श्याम के अतिरिक्त सब कुछ रिक्त है। सभी रंग बस मनोहारी लबादे के भीतर बैठे खोखले टीले हैं, और इन सबके बीच श्वेत-श्याम असलियत का जामा ओढ़े होने के कारण जीवन्त और प्राणवान है। श्वेत-श्याम वस्तुतः विरोधाभास नहीं अपितु हमेशा के सहचर हैं। जहाँ कुछ भी श्याम हो उसके आगे या पीछे श्वेत का होना उतना ही अवश्यम्भावी है जितना कि रात्रि के बाद भोर का फूटना। अन्य सभी रंगों का अस्तित्व महज तमाशा है और श्वेत-श्याम का होना पूर्णतया यथार्थ। अक्सर जो हम देख रहे होते हैं, वे चीज़ें सत्य की परिधि से कोसो दूर हुआ करती हैं। जीवन के मूल मूल्यों का भाव इन्हीं में निहित है। बाकी सब दिखावा है, फरेब है और कमोबेश हरेक शख्स इस बात से बखूबी अवगत है। श्वेत-श्याम का श्रृंगार दबंगई की टिकुली, साहस का अंजन, निर्भीकता की नथ और वास्तविक्ता के कर्णफूल हैं। बगैर श्रृंगार ये अधूरे हैं और हर श्रृंगार इनके बिना अधूरा है।