श्वेत और श्याम
उस चेहरे की हर लकीरों
के उतार-चढाव में
पलकों के खुलने-बंद होने मेंं
आंखों की तरलता और खामोशी मेंं
तनिक भी कहीं
वो अपनापन,
थोड़ा भी कहीं
प्रेम का एक कतरा बूंद,
हमारे लिये ना था
ढुंढने के अथक
प्रयास के बाद भी
सबकुछ श्वेत और श्याम था ।