श्वान और इंसान
एक इंसान को काटने को
ज्यों ही एक कुत्ता लपका।
तभी एक अनुभवी कुत्ता
उन दोनों के बीच टपका।
उसने उस व्यक्ति को
काटने से उसे रोका।
और यह कह कर उसे
समझाते हुए टोका।
कहीं इंसानी जीवाणुओं
का हम में हो गया संचार,
फिर हम सब का तो
बदल ही जाएगा संसार।
हमारे लिए भूख से पहले
है हमारी ईमानदारी।
उनकी ईमानदारी पर
उनकी रोटी है भारी।
कहीं हम में प्रवेश किया
कृतघ्नता का कीड़ा।
फिर कौन उठाएगा
कृतज्ञता का बीड़ा।
हम उन पर भौंकते नहीं,
जिन्हें हम जानते हैं।
वे उनका ही गला काटते हैं,
जिन्हें अपना मानते हैं।
हम में इंसानी जीवाणु आए
फिर होगा बड़ा विवाद।
हम में भी पनपेगा
धर्मवाद और जातिवाद।
एक अधम इंसान को
वे सब कुत्ता कहते हैं।
हम इंसान न कहलाएं
यही अरमान रखते हैं।