श्वांस
श्वांस ना रुक जाए,यूँ भयभीत हूँ
ज़िंदगी!तुम गद्य हो,मैं गीत हूँ।
इस जगत् में हम सदा संघर्ष ही करते रहे हैं
जीवन-अनल से,रोग से तो हम सदा लड़ते रहे हैं
तुम मेरे नवगीत हो और मैं ही तेरा मीत हूँ।
जी भर लड़ो मुझसे तुझे अफ़सोस ना रह जाए
मैं गीत हूँ तुम गद्य हो,तुम जीत मैं संगीत हूँ।
हार है किसके लिए,इस जीत का,उस हार का
जीव का जीवन सताकर, मृत्यु से भी प्यार का।
तुम प्रेम का सर्वस्व लेकर गद्य हो
मैं हारकर,सब कुछ लुटाकर पद्य हूँ
गर शब्द तेरे रस भरे हैं,मुझमे भी काफी जान है
तुम अंधेरे में छिपे हो,मेरी अलग पहचान है
तुम रीत हो लंबे समय से मैं तो जग का प्रीत हूँ
हँसते हँसाते गद्य हो तुम,मैं भावना का गीत हूँ।
श्वांस ना रुक जाए,यूँ भयभीत हूँ
ज़िंदगी!तुम गद्य हो मैं गीत हूँ।।
~~~~अनिल मिश्र,प्रकाशित