श्रृंगार
श्रृंगार
हिंदी भाव भूमि कर रही,नित काव्य सृजन श्रृंगार।
हुलस रही देखो हरीतिमा,कर वसुंधरा श्रृंगार।
बासंती चुनरिया उढ़ा,झर रही बसंत बयार।
देखो स्वर्णिम ऊषा रानी, वसुधा मुख नूर खिलाती
परिवेश सौंदर्य बढ़ा रहे,तरु वल्लरी हार श्रृंगार।
कलरव खग सुंदर कर रहे,सुन प्रेमगीत छाया खुमार।
घटाएं काली जुल्फ सजाती,सिरताज बनें गिरीराज।
कंगना बन झरने आंकते,बर्खा बूंदें पायल झंकार।
अद्भुत अप्रतिम सजी वसुधा कीन्हा सौलह श्रृंगार।
धन्य धन्य नीलम हुई,देखा अचला नूर अपार।
नीलम शर्मा