श्रृंगार
चूड़ियों की खनक से राग बन जाते हैं
पायलों की छनक से साज बन जाते हैं
आंखों के काजल से नजराने बन जाते हैं
माथे की बिंदिया से प्रीत बन जाती है
मांग में सजा वो सिंदूर किसी का मीत बन जाती है
कानों की बाली किसी का गीत बन जाती है
सजी वह हाथों की मेहंदी किसी का इंतजार बन जाती है
जब सज जाएं सब एक साथ तो किसी का सोलह श्रृंगार बन जाता हैं
** नीतू गुप्ता