श्रृंगार
मत निकालो मीन तुम और मत निकालो मेख
ज़िंदगी कविता रही है क्यों लिखूँ मैं लेख
भावना प्रतिपल जली है प्रेम को भी बाँटकर
नेह में लिपटी हुई बत्ती जली है प्रेम से।
दिल को तुमने छू लिया जब मत उकेरो दर्द को
मौन होकर सब सुनो है प्रलय इसमें अभी
ज्वार हैं,भाटे भी हैं,कुछ दर्द के कुछ प्यार के
कुछ दर्द के श्रृंगार के,कुछ मौत से भी प्यार के।
~~~अनिल मिश्र,प्रकाशित अंश