श्रृंगार रस
विधा-दोहा
20/7/2019
श्रगार-रस
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भाव रूप उर में बहे, जो बनकर रस धार।
सभी रसों का मूल रस, रसपति है श्रृंगार।।१
कविता में श्रृंगार रस, मर्म हृदय का घोल।
जो अब तक उर में छुपा, दिया बात वो बोल।।२
सब रस में श्रृंगार रस, कहलाता रस राज।
सदा शोभता शीश पर, सुन्दरता का ताज।। 3
सदियों से श्रृंगार रस, किया दिलों पर राज
अंतस मन को छू लिया,इसका मधुकर साज।४
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली