श्रृंगार करें मां दुल्हन सी, ऐसा अप्रतिम अपरूप लिए
मातृ भूमि पर, जीवन अर्पण, पुष्प समर्पित थाली है
ग्रीव ग्रीवा में, जयमाला की, हार पहनने वाली है
उत्तर में श्वेत हिम गिरी सा, मुकुट प्रकाशित धूप लिए
श्रृंगार करें मां दुल्हन सी, ऐसा अप्रतिम अपरूप लिए
यक्ष किन्नर, देव ऋषि की, सम्राज्ञी धरणी है
षष्ठ ऋतु के संचारण की, परम पूज्य तरणी है
चरण पखारे, रत्नाकर भी, गौरवांतिक अनूप लिए
श्रृंगार करें मां दुल्हन सी, ऐसा अप्रतिम अपरूप लिए