श्रृंगारित उर्वी फिर
व्यथित देख उसे, हृदय द्रवित उसका ।
प्रालेय बन अंबर, धरा तन पिघला ।
छलके स्वेद कण , तन अंबर से ,
पुलकित उर्वी , तन फिर दमका ।
आभित दीप्त प्रभा , निहार कण कण ,
श्रृंगारित उर्वी फिर , नवयौवन तन मन ।
…. विवेक दुबे”निश्चल”@..
Vivekdubeyji.blogspot.com