श्री हरि
श्री हरी
हे हरि हे लक्ष्मी प्रिय
करवद्ध नमन करो स्वीकार ,
लोचन प्यासे दरस तिहारे
है नैन पटल के खुले द्वार ।
मैं अज्ञानी मूढ़ मति
अति दूर प्रभु तेरा धाम
कौन वाहन जाता तेरी नगरी?
क्या भाड़ा,क्या होता दाम?
न नाता न रिश्ता जग में
स्वार्थी रिश्ते नाते हजार
संकट पड़े सब मुख मोड़े
निर्दयी,दुःखदायी है संसार ।
जब-जब संकट पड़ा भक्तों पर
हरि आए तब गरुड़ सवार
मैं भी उस पंक्ति से पुकारुं
कब आओगे प्रभु अबकी बार ।
हाथ पकड़ प्रभु मुझ को सम्भालो
करो कृपा हरि कृपानिधान
हे कृपामय करुणा के सागर
भवतारण का करो विधान ।
ललिता कश्यप सायर डोभा
जिला बिलासपुर ( हि0 प्र0)