श्री हनुमत् कथा भाग -2
श्रीहनुमत् कथा
भाग-2
अंजना कौन थीं?इस सम्बन्ध में एक रोचक कथा है।अंजना इन्द्र के यहाँ पुञ्जिकस्थला नामकी अप्सरा थीं ।वह अपनी कामुक क्रीड़ाओं से ऋषि-मुनियों की तपस्या भंग करके पथभ्रष्ट कर देती थीं ।इसका उस अप्सरा को अत्यंत अहंकार था।भगवान किसी के भी अहंकार रहने नहीं देते ।भगवान विष्णु एक तपस्वी के रूप में प्रकट हुए।पञ्जिकस्थला अप्सरा ने उनका तप भंग करने की बहुत कोशिश की जिससे अपने को क्रोधित सा दिखाते हुए तपस्वी ने उसे चंचलांगी वानरी होने का श्राप दे दिया ।इस कारण वह कुंजरेश नामक वानर के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई ।समय आने पर उसका केसरी नामक वानर के विवाह कर दिया ।वे दौनों कंचन नामक पर्वत पर सुखपूर्वक रहने लगे लेकिन काफी समय पश्चात् भी उनके कोई सन्तान नहीं ।निःसन्तान होना अत्यंत कष्टकारक होता है।जिस घर में बच्चों की किलकारी नहीं गूँजती वह घर किसी भी दृष्टि से शुभ नहीं होता ।सन्तान प्राप्ति के लिए अंजना ने भगवान भोले की कठोर तपस्या की ।भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसके पुत्र के स्वयं आने का वरदान दिया और कहा कि तेरा वह पुत्र बल वद्या एवं बुद्धि की अतुलित खान ,अपराजेय तथा तीनों लोक में वन्दित होगा ।समय आने पर भगवान शिव द्वारा निषिक्त वीर्य को वायुदेव ने कर्ण मार्ग से माँ अंजना की कुक्षि में स्थापित किया जिससे अतुलित बलशाली ,बुद्धिमान एवं ज्ञानवान वायपुत्र कसरीनन्दन बजरंगवली श्री हनुमानजी का जन्म हुआ ।
शेष अगले अंक में
कथा स्रोत- श्री हनुमच्चरित्रवाटिका संस्कृतमहाकाव्य(रचयिता-श्री हरिहरानन्द जी महाराज )
प्रस्तुतकर्ता -डाँ0 तेज स्वरूप भारद्वाज
बोलो परम बलबन्त श्री हनुमन्त लाल की जय??