*श्री विष्णु प्रभाकर जी के कर – कमलों द्वारा मेरी पुस्तक “रामपुर के रत्न” का लोकार्पण*
श्री विष्णु प्रभाकर जी के कर – कमलों द्वारा मेरी पुस्तक “रामपुर के रत्न” का लोकार्पण
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7 नवंबर 1986 को मेरी पुस्तक रामपुर के रत्न का लोकार्पण सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर के कर – कमलों द्वारा हुआ था । आज भी जब सोचता हूँ कि श्री विष्णु प्रभाकर जी केवल इसी एकमात्र कार्य के लिए दिल्ली से चलकर रामपुर आए ,तो कृतज्ञता से उनकी सहृदयता के प्रति नतमस्तक हो जाता हूँ।
” रामपुर के रत्न ” में चौदह महापुरुषों के जीवन – चरित्र लिखे गए थे और इस पुस्तक का लोकार्पण श्री विष्णु प्रभाकर जी से करा लिया जाए ,ऐसी इच्छा थी। कारण यह था और साहस भी इसलिए पड़ रहा था क्योंकि विष्णु प्रभाकर जी सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक से बहुत लंबे समय से जुड़े हुए थे । एक लेखक के तौर पर वह कृपा करके अपनी रचनाएँ प्रकाशन के लिए भेजते थे । पाठक के तौर पर उनकी प्रतिक्रियाएँ समय-समय पर साप्ताहिक पत्र को मिलती रहती थीं। जब मैंने रामायण पर कुछ लेख लिखे और “शंबूक वध :एक मूल्यांकन “लेख लिखा, तब विष्णु प्रभाकर जी की प्रोत्साहन से भरी हुई चिट्ठी मुझे मिली थी । इसके अलावा भी उनके दसियों पत्र हैं ,जो समय समय पर विभिन्न पुस्तकों पर आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त हुए हैं ।
“रामपुर के रत्न” पुस्तक के लिए विष्णु प्रभाकर जी आ जाएँगे ,यह तभी संभव हुआ जब श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी ने इस कार्य को अपने जिम्मे ले लिया। उन्होंने पत्र – व्यवहार करके विष्णु प्रभाकर जी से संपर्क साधा और विष्णु प्रभाकर जी पुस्तक के लोकार्पण के लिए आने को राजी हो गए । केवल राजी ही नहीं अपितु बड़े आश्चर्य की बात है कि वह उत्साहित थे। “विमोचन” के स्थान पर “लोकार्पण” शब्द भी शायद विष्णु प्रभाकर जी ने ही सुझाया था और यह अच्छा भी लगा तथा इसे हम लोगों ने अमल में भी लाया ।
विष्णु प्रभाकर जी को मुरादाबाद से रामपुर लाने के लिए रेलवे स्टेशन पर यहाँ से मैं ,श्री महेंद्र जी और डॉ नागेंद्र कार से मुरादाबाद गए थे । मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर ही सुप्रसिद्ध नव गीतकार श्री माहेश्वर तिवारी जी भी पधारे थे । वह भी विष्णु प्रभाकर जी को प्रणाम करने के उद्देश्य से ही आए थे । वास्तव में देखा जाए तो विष्णु प्रभाकर जी का वृद्धावस्था में ट्रेन का सफर करके मुरादाबाद पहुँचना तथा मुरादाबाद से कार द्वारा रामपुर आना एक बहुत ही थकाने वाली यात्रा थी । केवल नए साहित्यकारों से संपर्क रखते हुए उन्हें आशीर्वाद देने की भावना ही इस यात्रा के लिए उन्हें बल प्रदान करती रही होगी ,ऐसा मेरा मानना है ।
विष्णु प्रभाकर जी की जिस सादगी की हम कल्पना करते थे ,वह उसी की प्रतिमूर्ति थे। खद्दर के वस्त्र उनकी गाँधीवादी तथा सादगी में जीने की शैली को प्रकट करते थे । केवल इतना ही नहीं उनका कोई मीन – मेख अथवा परेशान करने वाली कोई बात उनके व्यवहार में नहीं दिखी । वह एक बहुत बड़े साहित्यकार हैं तथा एक छोटे से आयोजन के लिए पधारे हैं, इस बात को लेकर कोई अपना अहंकार उन्होंने किसी भी स्तर पर नहीं दिखाया। भोजन ,आवास आदि की व्यवस्थाओं में उनका कोई पूर्वाग्रह नहीं था । जैसा प्रबंध हम लोगों ने किया था ,वह उससे संतुष्ट थे, यह उनका बड़प्पन ही था।
लोकार्पण के अवसर पर उनका भाषण अत्यंत प्रेरणादायक था। लोकार्पण समारोह से पहले मैं और विष्णु प्रभाकर जी समारोह – कक्ष के निकट ही एक अन्य कक्ष में दस-पंद्रह मिनट बैठे थे । वहाँ मैंने देखा कि विष्णु प्रभाकर जी ने अपनी जेब से कागज का एक छोटा सा पर्चा निकाला और उस पर एक निगाह डाली । मैं समझ गया कि यह कुछ बिंदु है ,जिन पर उन्हें अपना भाषण देना है। सभी वक्ता थोड़ी – बहुत तैयारी इस दृष्टि से करके रखते हैं कि कोई महत्वपूर्ण बात उनके भाषण में छूट न जाए । विष्णु प्रभाकर जी ने भी इसी परिपाटी का अनुसरण किया था ।
रामपुर के प्रवास में आपके एक रिश्तेदार कोई मोदी फैक्ट्री में थे तथा आप उनसे मिलने के लिए भी उनके घर पर मेरे साथ गए थे । इसके अलावा श्री रघुवीर शरण दिवाकर राही जी के निवास पर भी भोजन का कार्यक्रम रखा गया था , क्योंकि दिवाकर जी का आग्रह था । मेरे ख्याल से महेश राही जी के महल सराय ,किला स्थित निवास पर भी वह मेरे साथ रिक्शा पर बैठकर गए थे । इस सारे भ्रमण में अत्यंत आत्मीयता पूर्वक उनका व्यवहार रहा । भोजन करते समय जब उनका फोटो खींचने का किसी ने प्रयत्न किया था, तब उन्होंने यह टिप्पणी अवश्य की थी कि खाना खाते समय फोटो नहीं खींचते हैं । यह बात भी बहुत मुस्कुराते हुए ही उन्होंने कही थी।
लोकार्पण के पश्चात (शायद महेंद्र जी के घर पर )जब मैंने उनसे आग्रह किया कि आप “रामपुर के रत्न” की एक प्रति पर अपने हस्ताक्षर करके मुझे भेंट कर दीजिए, तो उन्होंने बहुत विनम्रता पूर्वक कहा था कि यह मेरा अधिकार नहीं है । लेकिन जब मैंने उनसे दोबारा कहा, तब उन्होंने बिना देर किए अपने हस्ताक्षर करके पुस्तक की एक प्रति मुझे सौंप दी । बाद में जब मैंने अपनी अन्य पुस्तकों के लोकार्पण करवाए तथा कुछ अन्य लेखकों की पुस्तकों के लोकार्पण समारोहों में गया ,तब मैंने इस बात को नोट किया कि न केवल लोकार्पणकर्ता अपितु मंच पर आसीन अध्यक्ष तथा मुख्य अतिथि भी लोकार्पित पुस्तक की एक प्रति पर सामूहिक रूप से अपने हस्ताक्षर करके स्मृति – स्वरूप लेखक को सौंप देते हैं। मेरे एक कहानी संग्रह पर लोकार्पणकर्ता श्री मोहदत्त साथी ने न केवल अपने हस्ताक्षर किए अपितु मंचासीन मोदी फैक्ट्री के वरिष्ठ अधिकारी कविवर श्री आर .के. माथुर के हस्ताक्षर भी उस पर अंकित कराए थे। विष्णु प्रभाकर जी मुझे भेंट करने के लिए अपने साथ एक कहानी संग्रह तथा शुचि स्मिता नामक पुस्तकें भी साथ लाए थे। शुचि स्मिता में उनकी पत्नी के देहांत के उपरांत श्रद्धाँजलियाँ प्रकाशित हुई थीं। पुस्तकों की अमूल्य भेंट के लिए मैं उनका आभारी हूँ।
घर के एक बुजुर्ग की भाँति उनका स्नेह बराबर मिलता रहा। कार्यक्रम के उपरांत जब वह कार में बैठकर दिल्ली के लिए रवाना हुए, तब उनके जाने के पश्चात मन ने यही कहा कि कहीं यह सपना तो नहीं था कि विष्णु प्रभाकर जी “रामपुर के रत्न” के लोकार्पण के लिए रामपुर आए थे ? सत्य ही है कि विष्णु प्रभाकर जी की उदारता और उनके साहित्यिक – ऋण के प्रति आभार शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता । उनकी पावन स्मृति को शत – शत नमन ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451