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28 Aug 2018 · 1 min read

श्री राम वंदना

!! श्री राम !!
श्री सीता सप्तशती
अंक- १८५
*
? श्री राम वंदना ?
००००००००००००००
श्री चरणों में हे रघुनंदन ! प्रभु अमिय सिंधु लहराता है ।
पतवार नाम की जो थामे ,वह भवसागर तर जाता है ।।१

तुम जग के पालनकर्ता हो, भक्तों के दुख के हर्ता हो,
शरणागत जो भी हो जाये, वरदान अभय का पाता है ।।२

जो भजता नाम तुम्हारा है, वह राम दुलारा बन जाता ।
पत्थर तर जाते नाम तुम्हारा, भगवन मुक्ति प्रदाता है ।।३

तुम सूर्य वंश के नायक हो, भक्तों को सिद्धि प्रदायक हो ।
हे सियापते ! हम सबको प्रभु, बस नाम तुम्हारा भाता है ।।४

शिव ध्यान तुम्हारा करते हैं, हनुमान तुम्हें नित भजते हैं ।
शिव को तुम तुमको शिव प्यारे, यह कैसा अनुपम नाता है ।।५

तुम‌ क्षीर सिंधु तज कर आये, अपने सँग श्री जी को लाये ।
दशकन्धर सा असुराधिपती ,भी सदा आपको ध्याता है ।।६

हम शरण आपकी आये हैं ,श्रद्धा के लेकर दीप जले ।
है ‘ज्योति’ तुम्हारा दास प्रभो , गुणगान आपका गाता है ।।७

-महेश जैन ‘ज्योति’
क्रमशः……!
***

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Comments · 545 Views
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