श्री राम वंदना
!! श्री राम !!
श्री सीता सप्तशती
अंक- १८५
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? श्री राम वंदना ?
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श्री चरणों में हे रघुनंदन ! प्रभु अमिय सिंधु लहराता है ।
पतवार नाम की जो थामे ,वह भवसागर तर जाता है ।।१
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तुम जग के पालनकर्ता हो, भक्तों के दुख के हर्ता हो,
शरणागत जो भी हो जाये, वरदान अभय का पाता है ।।२
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जो भजता नाम तुम्हारा है, वह राम दुलारा बन जाता ।
पत्थर तर जाते नाम तुम्हारा, भगवन मुक्ति प्रदाता है ।।३
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तुम सूर्य वंश के नायक हो, भक्तों को सिद्धि प्रदायक हो ।
हे सियापते ! हम सबको प्रभु, बस नाम तुम्हारा भाता है ।।४
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शिव ध्यान तुम्हारा करते हैं, हनुमान तुम्हें नित भजते हैं ।
शिव को तुम तुमको शिव प्यारे, यह कैसा अनुपम नाता है ।।५
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तुम क्षीर सिंधु तज कर आये, अपने सँग श्री जी को लाये ।
दशकन्धर सा असुराधिपती ,भी सदा आपको ध्याता है ।।६
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हम शरण आपकी आये हैं ,श्रद्धा के लेकर दीप जले ।
है ‘ज्योति’ तुम्हारा दास प्रभो , गुणगान आपका गाता है ।।७
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-महेश जैन ‘ज्योति’
क्रमशः……!
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