श्री राधा मोहन चतुर्वेदी
राधा मोहन चतुर्वेदी रामपुर रियासत के अंतिम राज कवि थे। आपका जन्म बुद्ध पूर्णिमा अर्थात वैशाख पूर्णिमा को हुआ था तथा मृत्यु मौनी अमावस्या अर्थात माघ माह की अमावस्या को हुई थी।
2 अक्टूबर 2016 को श्री राम मोहन चतुर्वेदी द्वारा रामपुर में अपने पिता स्वर्गीय श्री राधा मोहन चतुर्वेदी जी की कविताओं का पाठ करने हेतु आभार- पत्र , जो उस समय पढ़ा गया था :
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आदरणीय श्री राम मोहन चतुर्वेदी जी
टैगोर शिशु निकेतन तथा राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय के वार्षिकोत्सव के अवसर पर आपने पधारकर अपने पूज्य पिताजी रियासत- कालीन राजकवि स्वर्गीय श्री राधा मोहन चतुर्वेदी जी की कविताओं का पाठ किया, इसके लिए हम आपके अत्यंत आभारी हैं ।
स्वर्गीय श्री राधा मोहन चतुर्वेदी हिंदी साहित्य तथा आध्यात्मिक जगत के गौरव थे। रामपुर के तो वह अत्यंत प्रतिष्ठित तथा महान व्यक्तियों में अग्रणी थे । उनकी प्रतिभा तथा विद्वत्ता से प्रभावित होकर उनके अभिनंदन हेतु उन्हें रियासत के दौर में विशिष्ट आदर प्राप्त होता था तथा राजकवि के रूप में पर्याप्त सम्मान मिलता था।
वह ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि थे ।काव्य में कलात्मकता उत्पन्न करने के लिए उसमें भाँति- भाँति से अनूठे प्रयोग करना उनकी विशिष्टता थी। उन्होंने ऐसी काव्य पंक्तियाँ लिखी थीं जो सीधी तथा उल्टी दोनों तरफ से एक जैसी पढ़ी जाती थीं। ऐसे छंद लिखे थे ,जिनकी पहली पंक्ति जहाँ से समाप्त होती थी अगली पंक्ति वहीं से शुरू होती थी। यह रसमय लयबद्ध कविताओं से आगे की चीज थी। आजकल जब अतुकांत कविताओं का काफी फैशन हो चला है, यह काव्यगत माथापच्ची विस्मय पैदा करती है।
राधा मोहन जी में क्रांतिकारी तथा स्वाधीनता संग्राम में भागीदारी की तेजस्विता थी । कोलकाता में व्यवसाय के संबंध में जब वहाँ जाकर रहे तो उन्होंने ‘नवभारत छात्रोत्थान संघ’ की स्थापना की तथा छात्रों को शस्त्र सिखाने का कार्य किया। इसके प्रमाण बंगाली भाषा में तथा हिंदी भाषा में 1939 के आसपास के समाचार पत्रों की कटिंग में उपलब्ध हैं ,जिन्हें बहुत यत्नपूर्वक आपने ( श्री राम मोहन जी ने) अभी तक सँभाल कर रखा है ।
स्वर्गीय कवि श्रेष्ठ आशु कवि थे। व्यक्तित्व सज्जनता से परिपूर्ण तथा प्रभावशाली था ।जब नवाब रजा अली खाँ रामपुर में गाँधी समाधि की स्थापना के लिए स्पेशल ट्रेन से गाँधीजी की चिता की भस्म लेने दिल्ली गए थे ,तो राधा मोहन जी भी उनके साथ थे ।
स्वर्गीय राधा मोहन जी की कथा वाचक के रूप में मधुर भूमिका का स्मरण आज भी नगर के बुजुर्ग करते हैं। स्वर्गीय बृजवासी लाल भाई साहब के निवास पर उनकी कथा रोजाना शाम को चलती थी। वह भक्ति- रस अनूठा था । कथा कहते समय राधा मोहन जी द्वारा गाई जाने वाली प्रिय कविता इस प्रकार है :-
मेरी लाज रघुराज के हाथ में है
धनुष – बाण जिनके वरद हाथ में है
न चिंता मुझे लोक- परलोक की है
अमित शक्ति श्री जानकी नाथ में है
यह कलिकाल क्या बाल बाँका करेगा
कृपा श्री कृपानाथ की साथ में है
अगोचर अगम ब्रह्म गोचर सुगम है
यह सामर्थ्य मोहन प्रनत माथ में है
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राधे मोहन चतुर्वेदी जी की दो कविताएं
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( 1 )
दीन की दशा पै दृष्टि देते हो न दीनबन्धु,
टेक छाँड़ि बैठे हो प्रतिज्ञा पुराचीन की।
याद रखो शेष नित्य नाम लेना छोड़ि देंगे,
सुगति रुकेगी वेगि नारद के बीन की ।।
चैन से न सैन (शयन) क्षीर सिन्धु में करोगे नाथ,
सहनी पड़ेगी ताप आपको भी तीन की।
बिलखि रहे हैं द्विज धेनु औ किसान देखो,
गजब करेंगी आहें दर्द भरी दीन की ॥
( 2 )
दीन की दुनि में कौन रहता है बात जहाँ,
केवल है चाह जर जोरी और जमीन की।
मीन की तरह नेह नीर के पियासे दीन,
गुन की ग्लानि है कदर गुनहीन की ।।
हीन की है हिन्द की दशा ये स्वार्थसाधकों ने,
आप ही बिगारी गैल दुनि को सुदीन की।
दीन की कुगति जमदूत क्या करेंगे ऐसी,
जैसी दुर्दशा धनी करते हैं दीन की ।।
दीन दुखियों के प्रति पक्षधरता को समर्पित राधे मोहन चतुर्वेदी जी के ब्रजभाषा में लिखित दो कवित्त इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं कि इनमें जहां एक ओर ईश्वर भक्ति है, वहीं दूसरी ओर अपने आराध्य से कवि संसार के समस्त दुखी प्राणियों के दुख को दूर करने की याचना भी करता है।
इन कविताओं में निर्धन की पक्षधरता तथा धनिकों के व्यवहार के प्रति रोष स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आधुनिक कसौटी पर अगर हम इन कविताओं को रखें, तो यह जनवादी और प्रगतिशील कविताओं की श्रेणी में ही आएंगी। एक अच्छा संसार तभी रचा जा सकता है, जब दीन व्यक्ति विकास के द्वारा उच्च धरातल पर आसीन हो और धनिकों द्वारा उसका शोषण समाप्त हो सके।
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लेखक :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश मोबाइल 9997615451