पारसदास जैन खंडेलवाल
* पारसदास जैन खंडेलवाल : शत शत नमन*
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श्री पारसदास जैन खंडेलवाल (मृत्यु 5 अगस्त 2020 बुधवार रात्रि) वास्तव में एक निष्काम कर्मयोगी थे । भगवद्गीता में जिस स्थितप्रज्ञ की परिकल्पना की गई है, वह उन पर सटीक बैठती थी। संसार के सब कार्यों में लगे रहते हुए भी अपनी केंद्रीय चेतना को परमात्म- तत्व की ओर लीन बनाए रखने की अद्भुत कला उन्हें आती थी।
जब से मैंने होश सँभाला, खंडेलवाल बुक डिपो, मेस्टन गंज, रामपुर की दुकान पर उन्हें व्यापार करते हुए पाया । वह दुकान के मालिक थे और जनपद के सर्वश्रेष्ठ पुस्तक विक्रेता की उनकी उपलब्धि थी । सफेद कुर्ता और सफेद पाजामे के साथ उनका लंबा कद, गंभीर आवाज तथा अनुशासन में ढला हुआ व्यक्तित्व किसी पर भी अपनी छाप छोड़े बिना नहीं रह सकता था। उनके जीवन में अद्भुत संतुलन था । वह एक बौद्धिक व्यक्ति थे । दिनभर किताबों के विक्रय के बीच में रहते हुए भी दार्शनिक चिंतन मानो उनका स्वभाव बन गया था।
अपनी सार्वजनिक चेतना के कारण ही वह शिक्षा क्षेत्र में सक्रिय हुए तथा जैन समाज के द्वारा संचालित इंटर कॉलेजों के प्रबंधक का दायित्व उन्होंने लंबे समय तक संभाला । उनकी ईमानदार छवि थी। कर्मठ तथा सात्विकता से ओतप्रोत भावनाएँ थीं।
जब सरकार की दृष्टि प्रबंधकों द्वारा संचालित इंटर कॉलेजों को हड़पने के लिए दिखाई देने लगीं ,तब पारस दास जी अन्य प्रबंधकों के साथ सक्रिय हो उठे । वर्ष 1980-85 के आसपास हमारे घर पर विद्यालय प्रबंधकों की कई मीटिंगें लगातार हुआ करती थीं। सरकार की हड़पने वाली कुदृष्टि सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों पर पड़ने लगी थी ,ऐसे में उन मीटिंगों में श्री पारस दास जी की मुख्य भूमिका रहती थी । अन्य लोगों में श्री सोहन लाल लाट , श्री ब्रजपाल सरन ,श्री जयसुखराम आर्य तथा कभी-कभी मुरादाबाद से श्री वेद प्रकाश वर्मा जी भी आ जाया करते थे । पारस दास जी विषय पर स्पष्ट विचार रखने वाले व्यक्ति थे । सरकार से सबका दिल खट्टा हो चुका था लेकिन फिर भी विद्यालय तो चलाने ही थे , इसलिए रणनीति बनाई जाती थी । पारस दास जी इन सब में केंद्रीय भूमिका में रहते थे।
विद्यालयों के माध्यम से समाज की निस्वार्थ सेवा के लिए श्री पारस दास जैन खंडेलवाल को हमेशा याद किया जाता रहेगा । वह उन लोगों में से थे , जिनके लिए विद्यालय चलाना राष्ट्र और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन था तथा समाज को अपना योगदान अर्पित करने का भाव था।
उनकी कर्मठता के क्या कहने ! कर्मठता ऐसी कि मृत्यु से शायद दो – तीन साल पहले जब मेरा जैन मंदिर ,फूटा महल के किसी कार्यक्रम में जाना हुआ तो वहाँ पारस दास जी को साधना-रत बैठे हुए देखा । जितनी देर कार्यक्रम चला घंटा – दो घंटा ,वह उसी अवस्था में साधना रत रहे।
अभी भी अनेक बार खंडेलवाल बुक डिपो दुकान पर मिस्टन गंज पर मैं उन्हें बैठा हुआ देखता था तथा मन ही मन आह्लादित हो उठता था । कई बार उनसे जाकर मिल कर प्रणाम कर लेता था और यह बहुत सुखद लगता था कि दीर्घायु के उपरांत भी वह सक्रिय , सचेत तथा सब कार्यों को करने वाले व्यक्ति थे । यह सब सात्विक आचार – विचार ,भोजन आदि के उनके अनुशासित जीवन का ही सुपरिणाम था । उनकी पावन स्मृति को शत-शत नमन ।
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रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451