श्री कृष्ण महिमा
विद्या :- गीत
छंद :- हरिगीतिका छंद
छंद विधान:- ? हरिगीतिका एक मात्रिक छंद है जिसमें 16,12 कुल 28 या 14,14 कुल 28 मात्राएँ होती हैं। ? चार पंक्तियाँ तथा दो या चार समतुकांत होते हैं। 5,12,19 और 26 वीं मात्रा हमेशा लघु ही होनी चाहिए इससे लय बाधित नहीं होगी।
दिन:- मंगलवार
दिनांक:- ११/०८/२०२०
? #श्रीकृष्ण_महिमा?
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यह है कथा अवतार की, जो कृष्ण बनकर आ गये।
माखन चुरा बंशी बजा, वह गोपियों को भा गये।।
श्री कृष्ण जन्में जेल में, तब रात काली थी घनी।
भादो बदी तिथि अष्टमी, वह शुभ घड़ी तब थी बनी।।
वसुदेव ने देखा जभी, तब ले चले है पुत्र को।
कैसे बचेगा कंस से, अब ढूंढने हर सूत्र को।।
अव्यक्त बनकर नाथ भी, संसार को दिखला गये।
यह है कथा अवतार की, जो कृष्ण बनकर आ गये।।
महिमा अजब भगवान की, ताले खुले सब जेल के।
कारा निरिक्षक सो गये, मोहरा बने इस खेल के।।
वसुदेव लेकर सूप में, जब कृष्ण को गोकुल चले।
यमुना उफनती जा रही, तब कृष्ण को लगने गले।।
नवनीत पग अपना बढ़ा, यमुना हिय लुभा गये।
अवतार की यह है कथा, जो कृष्ण बनकर आ गये।।
लीला दिखी श्रीकृष्ण की, कैसे बताऊँ क्या हुआ।
यमुना हुईं थी शान्त तब,जब कृष्ण के पग को छुआ।।
है नन्द के घर आ गई, आनंद की सौगात थी।
तासे बजे अरु ढोल भी, बस हर्ष की बरसात थी।।
गोविन्द लै अवतार तब, गोकुल नगर में छा गये।
यह है कथा अवतार की, जो कृष्ण बनकर आ गये।।
हे ! नाथ वसुधा रो रही, भक्त भी सब हैं डरे।
कैसे बचेगा धर्म जब, रक्षक ही उसके अधमरे।।
है त्राहि – त्राहि अब धरा, आकर उबारो कंस से।
अपवित्र वसुधा हो रही, अब कंस के इस दंश से।।
कंसारिरे का रूप धर, प्रभु कंस पर घहरा गये।
यह है कथा अवतार की, जो कृष्ण बनकर आ गये।।
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मैं घोषणा करता हूँ,मेरे द्वारा प्रेषित उपरोक्त रचना पूर्णतः स्वरचित,मौलिक है
[ ✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’ ]