श्री कृष्ण जन्म कथा
काल चक्र खुद रुक गया , शून्य सृष्टि का आज ।
कान्हा का जैसे हुआ , धरती पर आगाज ।।
वासुदेव के खुल गये , पावों से जंजीर ।
पवन देव निज रूप को , किये और गंभीर ।।
तीव्र धार होने लगी , बरखा चारों ओर ।
रात्रि कालिमा घिर गयी , दिखे न कोई छोर ।।
द्वारपाल मुर्छित हुए , खुले द्वार सब बंद ।
वासुदेव फिर चल पड़े , होकर मृदु स्वच्छंद ।।
शेषनाग फण खोल के , किये कृष्ण सिर छाँव ।
यमुना जी धोने लगी , कान्हा जी के पाँव ।।
कान्हा मथुरा से चले , पहुँचे गोकुल गाँव ।
सारा जग सोता रहा , खेल गये प्रभु दाँव ।।
मातु देवकी ने जना , बेटी को इस बार ।
खबर मिला जब कंश को , मुग्धित हुआ अपार ।।
पुत्र आठवाँ नहीं हुआ , जो था मेरा काल ।
कंश थहाके मार कर , होने लगा निहाल ।।
शिल पर टकराने चला , जब कन्या का माथ ।
अष्टभुजी ऊपर गयीं , स्वयं छुड़ाकर हाथ ।।
अन्त आज निश्चित हुआ , तेरा पागल कंश ।
जन्म ले चुका है यहाँ , वासुदेव का अंश ।।