श्रीराम गिलहरी संवाद अष्टपदी
सांवरे कुमार ने निहारिके विचार कीन्ह काहे गिलहरी एक सेतु पर धावे है ।।
आती जल न्हाती तट रेनू को पुनि पुनि, तब निज छोटे वपु पे लपेट लावे है ।।१।।
फिरि फिरि तब सेतु ढिग ऊपर पुनि धाई धाई अंगन से रेनू झड़कावे है ।।
देखिके चकित चित राम श्रुतिसेतु सब प्रेम में मगन मंद मंद मुसुकावे है ।।२।।
जाओ लै आओ उस भद्र को जो छोटो कांधन पै बीडो बड़ भारी उठावे है ।।
दीन्हि अनुसासन हँकारि के कहियो जब अंजना के लाल सादर लै आवे हैं ।।३।।
आई गिलहरी माथ नाई रामपद अश्रु धार नयनों से तब रुक नहीं पावे है ।।
पूछ्यो कृपाल तब हेतु इस श्रम को तो हाथ जोड़ गिलहरी अति सकुचावे है ।।४।।
बोली तब, राम! देखि कंटक कठोर पाषाण तरु भूधर कलेजा मुंह को आवे है ।।
जिन्ह मृदु चरण सरोज सम कोमल सो चरण चलेंगे कैसे मन घबरावे है ।।५।।
कोमल चरण हेतु कोमल समुद्र रेनू सब भाँती उपयुक्त समझ बतावे है ।।
इसी कारण थोड़ी थोड़ी कर यह कोमल समुद्र रेत दास झिरियों में भरी आवे है ।।६।।
राम पूछे इन अति सुभट्ट कपिन्ह बीच काहेको प्राण संकट में गवांवे है ??
बोली कर जोर प्रभु पाए जो भी मीच इस बीच तोरी सपथ बैकुंठ पद पावे है ।।७।।
मुसुकाए प्रभु पीठ फेरयो सरोजकर दीन्ह्यो असीस प्रेम ह्रदय ना समावे है ।।
आज दिन रेखा तीन “जड़मति” गिलहरी की कोमल पीठ की शोभा ही बढ़ावे हैं ।।८।।