श्रीमती का उलाहना
मेरी कविताओं को देख,
श्रीमती का उलाहना है,
सारे भाव ख्वाबों में आते,
मुझे देख न कुछ आता है;
मैं कहता हूंँ दिल में भाव,
तुम्हें देख उमड़ता है,
“हेतु-हेतु मद् भूतकाल’
का सारा उदाहरण बनता है;
तुम अगर लैला होती,
तो मैं मजनूं पैदा होता,
और यदि तुम रांँझा होती
तो हीर बन पैदा लेता;
मर्लिन मुनरो या होती मधुबाला,
तो मेरी बस्ती होती मधुशाला,
या होती नरगिस-सुरैया,
तो करता मैं ता-ता थैया;
पर जो भी हो,
तुम लाजवाब हो,
मेरी कविता
की ख्वाब हो,
जब भी देखूंँ तेरी ओर,
तुम सूर्ख लाल गुलाब हो।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)