श्रीकृष्ण जन्म
#विधा – #हरिगीतिका_छंद
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? श्रीकृष्ण जन्म?
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श्री कृष्ण जन्में जेल में तब, रात काली थी घनी।
भादो बदी तिथि अष्टमी को, शुभ घड़ी वह थी बनी।।
वसुदेव ने देखा जभी तब , ले चले वो पुत्र को।
कैसे बचायें प्राण इसकी, ढूंढने उस सूत्र को।।
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महिमा अजब भगवान की ताले खुले सब जेल के।
कारा निरिक्षक सो गये मोहरा बने इस खेल के।।
वसुदेव लेकर सूप में जब, कृष्ण को गोकुल चले।
यमुना उफनती जा रही तब, कृष्ण को लगने गले।।
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लीला अजब श्रीकृष्ण का, कैसे बताऊं क्या हुआ।
यमुना हुईं थी शान्त तब जब, कृष्ण के पग को छुआ।।
तब नंद के घर आ गई, आनंद की सौगात थी।
बजने लगे मृदंग ढोलकी, हर्ष की बरसात थी।।
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श्री कृष्ण आ कर अब उबारो, दुष्ट से सब थे डरे।
कैसे बचेगा धर्म जब रक्षक ही उसके अधमरे।।
है त्राहि – त्राहि अब धरा आकर उबारो कंस से।
अपवित्र वसुधा रो रही है कंस के अब दंश से।।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
पूर्णतया मौलिक, स्वरचित, स्वप्रमाणित, अप्रकाशित रचना (सर्वाधिक सुरक्षित)
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मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार