श्राद्ध ही रिश्तें, सिच रहा
भ्रम केसा फेल रहा, अपने धर्म को तोल रहा
मानव धर्म के रहा मे, अपने तरको से बोल रहा
पितरो की रीत को, सोशल ज्ञान से तोल रहा
पिण्ड दान करने को, वह बकवास है बोल रहा
धर्म की माँ गंगा, तप भागीरथ का अब डोल रहा
माँ बाप को रोटी मिलती नहीं अपनी संतानो से
माँ बाप की सेवा होती हो रही अपने संस्कारों से
संस्कार नहीं विदेश मे, बुजुर्ग का हाल दिख रहा
धर्म, रिश्तें, रिवाजो से, बुजुर्ग सदा हमारा पूज्य रहा
यह भ्रम केसा फेल रहा, अब धर्म को तोल रहा
पितर पक्ष में रिश्तों को, श्राद्ध ही धर्म को सिच रहा
श्राद्ध की एक रीत से, परिवारों को है जोड़ रहा
पितर थोड़ी ना तेरा खानें, स्वर्ग से वापस आते है
श्रद्धापूर्वक श्राद्ध के गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं।
यह तो हमारे हाथों से, अन्न दान पुण्य करवाते है
यह भ्रम केसा फेल रहा, अब धर्म को तोल रहा
5 तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति- संग
9 तत्वों से पितर 10 तत्व मे पुरुषोत्तम निवास करते हैं
पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं परिजन को वे वर देते हैं।
पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख,
स्वर्ग व मोक्ष प्रदान, वह समस्त जगत को तृप्त कर देते है।
🖋लीलाधर चौबिसा अनिल
चित्तौड़गढ़ 9829246588