श्रम साधक को विश्राम कहाँ
श्रम साधक को विश्राम कहाँ
***********************
देखा है खेत – खलिहानों में
बाजारों की खुली दुकानों में
निर्माणाधीन घर-मकानों में
श्रम साधक को विश्राम कहाँ
जेठ की धूप में वो तपते है
पौष की शीतलता में ठरते हैं
भूख प्यास को रहते सहते हैं
श्रम साधक को विश्राम कहाँ
शोषण श्रमिक का किस्सा हैं
दुख दर्द भाग्य का हिस्सा है
कुंठित हो करता वो गुस्सा है
श्रम साधक को विश्राम कहाँ
गम के बादलों में घिरा हुआ
कष्ट- विपदाओं में पड़ा हुआ
गरीबी जंजीरों में जड़ा हुआ
श्रम साधक को विश्राम कहाँ
कर्जे में डूबा हुआ है कर्जदार
बैंक- साहूकारों का है देनदार
तंगहाली जीवन का ये उपहार
श्रम साधक को विश्राम कहाँ
***********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)