श्रम एवं श्रमिक
बेशक उसके तन पर
कोई वस्त्र नहीं कीमती,
शायद इसलिए उसकी
हस्ती नहीं किसी को दिखती।
मुस्कुराकर करता है वह
अपने हिस्से के सारे काम,
ना किसी से कोई गिला
ना किसी पर इल्जाम ।
बस दो जून की रोटी और
बिटिया के हाथ पीले ,
इतनी ही उसकी चिंता
इतनी ही उसकी ख्वाहिशे।
शाम को घर पर वो
जो भी लेकर जाए,
मेहनत और ईमानदारी
की खुशबू उसमें आए ।
मुफ्त राशन मुक्त मकान
का लालच नहीं मन में,
लेकिन हां मिले काम और
सम्मान उसके जीवन में ।
वो श्रमिक ही है जिसने
सड़क, पुल, मकान बनाया ,
हाथ बढ़ा कर अपना जिसने
हमारा जीवन आसान बनाया।
नतमस्तक है हम सब
उसके श्रम और कर्म के आगे ,
उसके ही तो कर्मों से
हम सब के भाग्य है जागे।