श्रमेव जयते
बढ़ई के माथे से गिरा पसीने का एक बूंद
लकड़ी पर चमकीला बिन्दु बना देता है
लेकिन रेन्दे का एक आक्रोश
मिटा देता है उसे सदा के लिए
अब रेन्दे का रौब तो देखिए
एक से दो, दो से तीन आक्रोश
करता जा रहा है लगातार
लेकिन उससे बेहतर तो वो पसीना है
जिसकी महक आ रही है
आज भी चंदन की लकड़ी से
✍️_ राजेश बन्छोर “राज”
हथखोज (भिलाई), छत्तीसगढ़, 490024