श्रमिक
पसीने से लथपथ
एक श्रमिक का
टूटता शरीर
तलवे से आधा लटका
मांस का लोथड़ा
तपती सड़क पर
हज़ारों किलोमीटर से
गांव में बसे
भारत की खोज में
जब पल-पल तड़पता है
तो
भारत की आत्मा
बिलखती है,रोती है
लंबी दूरी तय कर
अपने गाँव की सीमा पहुँचकर
गिर पड़ता है
भारत
गाँव की माटी को
दंडवत करते हुए
जब
एक बूढ़ी माँ
पूछती है
‘बेटा यह अपना भारत ही है ना
यह वही भारत है ना
जिसे वीर भरत के नाम पर
रखा गया था
और हाँ
राजा विक्रमादित्य यहीं हुए थे ना’
आत्मा में छाले पड़ जाते हैं
रोती है
देश की धड़कन
वीर भरत बिलखता है
राजा विक्रमादित्य भी
पुनः अवतरित हो
न्याय करने के लिए
पल-पल तरसता है
फफकता है,सिसकता है।
-अनिल कुमार मिश्र