श्रद्धा सुमन
आजादी की बलिवेदी पर ,जिन वीरों ने शीश चढ़ाए
ढेरे यातना सही, जो लौट न घर को आए
ऐसे वीर शहीदों को, मैं श्रद्धा सुमन चडाता हूं
मातृभूमि के अमर प्रेम को, अपना शीश झुकाता हूं खड़ा हुआ है सीमाओं पर ,न होली न दीबाली
भीषण गर्मी सर्दी में जो, करते हैं रखवाली
नस्ल और आतंकवाद में, जो शहीद हो जाते हैं
पुलिस और अर्धसैनिक बल ,जो सेवा पर जान लुटाते
हैं ऐसे वीर सपूतों को मैं, श्रद्धा सुमन चढ़ाता हूं
उनके इस अदम्य साहस को, अपना शीश झुकाता हूं वहा रहा जो खून पसीना ,जो खेतों में अन्न उगाता है बना रहा जो भवन सड़क, जो मिल में हाथ बताता है उनके श्रम और योगदान को, सादर शीश झुकाता हूं ज्ञान और विज्ञान से अपने, जो आगे देश बढ़ाते हैं मेहनत से भविष्य गड़ते हैं ,जो देश को सदा पढ़ाते हैं ऐसे श्री चरणों को हम, श्रद्धा भाव चढ़ाते हैं
उनके श्री चरणों में हम, अपना शीश झुकाते हैं
जो जन गण मन श्रद्धा से ,अपना कर्तव्य निभाते हैं अधिकारों से पहले जो ,कर्म का फूल चढ़ाते हैं
ऐसे इस सज्जन समाज को ,अपना शीश झुकाता हूं भारत माता के चरणों में ,अपना शीश नवाता हूं