श्रंगार
तुम्हारे शहर की मस्त हवा रूमानी हो गई है।
तुम्हारी गलियों की फिज़ा मस्तानी हो गई है।
तुम्हारे घर का आंगन चमन सा महक गया है।
यह देख मेरी चाल शराबी सी लड़खड़ा गई है।
विपिन
तुम्हारे शहर की मस्त हवा रूमानी हो गई है।
तुम्हारी गलियों की फिज़ा मस्तानी हो गई है।
तुम्हारे घर का आंगन चमन सा महक गया है।
यह देख मेरी चाल शराबी सी लड़खड़ा गई है।
विपिन