श्रंगार लिखा ना जाता है।।
नमस्कार साथियो,
आज मैं आपके साथ अपनी एक और कविता साझा कर रहा हूं। जिसकी भूमिका इस प्रकार है की मुझे श्रंगार लिखना अच्छा लगता है इसलिए मैंने निश्चय किया की प्रेम का सप्ताह है फरवरी का द्वितीय सप्ताह और 14 फरवरी का दिन इसलिए मैंने एक प्रेम गीत लिखने का निश्चय किया किंतु मुझे उस दिन की पुलवामा की वो मार्मिक घटना याद आ जाती है जिससे आप सब भली भांति अवगत हैं। उस घटना को याद करने के बाद मेरे हाथों से कलम छूट गई उस दिन मैं श्रंगार नहीं लिख सका।
लेकिन मेने उस दिन एक कविता अवश्य लिखी जिसका शीर्षक है– “श्रंगार लिखा ना जाता है” वही आज आप सबके साथ साझा कर रहा हूं।।🙏🙏
मैं लिख दूं गीत अभी यौवन के,
शब्दों से श्रंगार रचूं।
कलियां, भंवरे, पायल, कुमकुम,
मैं काजल क्या क्या और लिखूं?
पर जब–जब चीख करुण सुनता हूं,
आहत मन अकुलाता है।
लिखना चाहूं श्रंगार मगर, श्रंगार लिखा ना जाता है।
कलियां मुरझाकर शुष्क होती,
काजल अश्रु बन बहता है।
भंवरे उड़ दूर भागते हैं,
कुमकुम सोंडित सा बहता है।
आंखों में लावा फूट–फूट,
शब्दों का फेर बदलता है।
फिर आहत मन घबराता है,
और रूदन सुनाई देता है।
लिखना चाहूं श्रंगार मगर, श्रंगार लिखा ना जाता है।।
अभिषेक सोनी
(एम०एससी०, बी०एड०)
ललितपर, उत्तर–प्रदेश