श्रंगार मुक्तक
नेह से मीत सा नेह क्यों कर लिया|
रेत से नीर सा प्रेम क्यों कर लिया |
प्रीत की पीर से अश्रु बहते रहे
र्दद से देह का मेल क्यों कर लिया|
वासना मुक्त अनुराग मैने किया|
साधना युक्त संवाद मैने किया |
हो धरा ब्योम बन दूर क्यों हो गई
प्रार्थना युक्त सम्मान मैने किया|
उगृता शान्त बनकर सहज हो गई|
नमृता नमृ बनकर प्रबल हो गई|
आपका मौन अब नेह दर्पण बना
आस्था प्रेम की अब नवल हो गई|
क्रोध की अग्नि पर हिम बरसने लगा|
आपके साथ को मन तरसने लगा|
लव नयन केश मन उर मृदुल गात बन
नेह रवि हर सुबह अब निकलने लगा|
रचयिता
रमेश त्रिवेदी
कवि एवं कहानीकार