Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Dec 2022 · 6 min read

श्याम बैरागी : एक आशुकवि अरण्य से जन-जन, फिर सिने-रत्न तक पहुंच

देश के स्वच्छता अभियान से जुड़े सर्वाधिक लोकप्रिय गीत ‘गाड़ीवाला आया घर से कचरा निकाल’ से देश-विदेश में प्रसिद्ध और मध्यप्रदेश के अरण्याच्छादित आदिवासी अंचल में जन्मे जनकवि-गायक श्याम बैरागी यानी एक नैसर्गिक आशुकवि. गीत-गजल-कविताओं का सातत्य अक्षय स्रोत. उनका व्यक्तित्व, लेखन और लिखावट में पूरी तरह से साम्यता-एक रूपता. उनके व्यक्तित्व के तीनों ही पहलुओं में श्रृंगार, विनोद और सहज माधुर्यता की अभेद्य कोटिंग. मैंने जहां तक समझा सिर्फ कोटिंग ही नहीं, बल्कि आपको उनके व्यक्तित्व के तीनों ही स्तर ‘कोटिंग, पल्प और कोर’-पर आपको सिर्फ यही तीन चीजें ही दिखाई देंगी-विनोद, श्रृंगार और सामाजिक माधुर्यता. जब भी आप उनसे बात करेंगे तो यही तीन बातें ही उनके व्यक्तित्व से भी छलकती दिखेंगी, डायरी पर भी उनकी रचनाएं और लिखावट देखेंगे तो उसमें भी पाएंगे तो बस माधुर्यता और मोहकता. मुझे लगता है प्रगतिशील तो वे जन्मजात ही हैं.
बहुत से पाठक-मित्र शायद ‘आशुकवि’ का मतलब न समझते हों तो मैं उनको बता दूं. आशुकवि का मतलब होता है-त्वरित कवि. आप उन्हें लिखने को कोई विषय-वस्तु दें तो वे कुछ क्षणों में ही उसे कागज पर उतार देंगे. उसे पढ़कर आपके मुंह से यही निकलेगा-‘बिल्कुल..बिल्कुल यही बैरागी जी, यही तो मैं चाहता था, बिल्कुल वही आपने लिखा भाई, गजब… बैरागी जी!!! यह है श्याम बैरागी जी का सातत, त्वरित और मनमोहक लेखन. उनका लेखन यानी ‘मिररली रिएक्शन’. मिरर यानी दर्पण. दर्पण के सामने आप खड़े होंगे, तो दर्पण वही न दिखाएगा जो आप हैं. बस ऐसा ही कुछ है श्याम बैरागी जी का लेखन संसार. जो आप चाहेंगे, या जो सिच्युएशन देंगे, वे वही लिख देंगे और वह भी झटपट. लेखन के मामले में मूड-वूड जैसी शर्तें रखते तो मैंने कभी उन्हें नहीं देखा.
मुझे तारीख तो याद नहीं है, लेकिन उनसे मेरी पहली मुलाकात सितंबर 1991 में हुई थी. यह तो अच्छी तरह से याद है उस वक्त गणेशोत्सव चल रहा था. मेरे गृह नगर से करीब 7-8 किलोमीटर है उनका गांव बहेरी जो मंडला-कान्हा किसली रोड से थोड़ा अंदर स्थित है. पिता एकदम सामान्य कृषक जिनका करीब 20 वर्ष पूर्व ही देहांत हो गया है, छोटा सा खपरैल मकान, आज से करीब 20 वर्ष पहले तक परिवार सहित गांव के प्राय: सभी लोग निरक्षर-लेकिन प्रकृति का करिश्मा देखिए कि ऐसे अरण्य-अशिक्षित क्षेत्र में यह साहित्य-सितारा जन्म लेता है और आज देश की राजधानी दिल्ली में बॉलीवुड सितारों के साथ मंच साझा करता है. उनका स्वच्छता-गीत ‘गाड़ीवाला आया घर से कचरा निकाल’ बॉलीवुड स्टार वरुण धवन की 25 नवंबर को रिलीज हुई फिल्म ‘भेड़िया’ में गूंज रहा है. उन्हें वरुण धवन जी ने फिल्म के प्रमोशन के लिए मंच साझा करने हॉटल इम्पीरियर, कनॉट प्लेस, दिल्ली बुलाया जहां वे सपत्नीक 23 नवंबर 2022 को उपस्थित हुए.
सितंबर 1991 से आज तक अर्थात 31 साल तक के इस निकट-सान्निध्य में मैंने उनकी जिंदगी के हर पहलुओं को करीब से देखा-जाना है. मैंने यही जाना कि उनका लेखन किसी नदी के प्रवाह की तरह है. लेखन के पीछे उनकी मंशा किसी मुद्रायुक्त लिफाफा, चेक पाने और मंच में चमकने की नहीं रही. लेखन उनका पैशन अर्थात जुनून है. चाहे घर का बैठक रूम हो, या रेस्टारेंट, या फिर कोई छोटा-छोटा सा भी मंच, बहुत कम लोगों की मौजूदगी में भी जबर्दस्त उत्साह से मैंने उन्हें अपनी रचनाएं सुनाते देखा है. आज भी उनकी यही चाहत है कि वे जो लिख रहे हैं, वह किसी भी तरीके से जनता तक पहुंचे. आज जब वे एक ‘सेलिब्रिटी’ का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं, तब भी उन्हें मध्यप्रदेश के मंडला शहर के किसी नुक्कड़ या कभी किसी सुदूर आदिवासी बहुल गांवों में भी जिला प्रशासन, किसी सामाजिक संस्था या किसी एनजीओ के अनुराेध पर जागृति-गायन करते देखा जा सकता है. मुझे पूरा विश्वास है कि साहित्य-समाज के प्रति यही रवैया-नजरिया उनका बरकरार रहेगा.
साहित्य के प्रति बैरागी जी का उन्के लेखन से भी बड़ा योगदान मैं यह मानता हूं उनके द्वारा साहित्य को एक जनांदोलन का रूप देना. जब वे बम्हनी बंजर में थे तो नगर में स्थिति यह बन गई थी कि सैकड़ों रचनाकार सामने आ गए थे और बेहतर समझ के साथ रचना करने लग गए थे. इसी तरह गांव-गांव पहुंचकर मंच पर कवि-सम्मेलन करने का सिलसिला भी उन्होंने काफी तक चलाया था. यह होती है सच्ची साहित्यिक-साधना-चेतना. यदि इस तरह के प्रयास देश के हर कोने पर हों तो प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भी मजबूरी हो जाएगी कि वे कुछ क्षण और कुछ पृष्ठ देश की साहित्यिक शख्सियतों की पुण्यतिथि-जयंती-जन्मदिवस पर भी देने लग जाएंगे.
अपने आज तक के जीवन-काल में मेरा संपर्क बहुत सी साहित्यिक शख्सियतों से हुआ लेकिन श्याम बैरागी जैसा यह नजरिया बहुत कम लोगों में ही पाया. मैंने अधिकांश सो-काॅल्ड साहित्यिक लोगों को साहित्य के ग्लैमर से अभिप्रेत, लिफाफा-संस्कृति प्रेमी और सम्मान का ही भूखा-भेड़िया पाया. कुछ लोग अपने लेखन को कुछ इस अंदाज मेंं पेश करते हैं जैसे समाज पर वे कोई बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं. अगर वे लेखन नहीं करेंगे तो दुनिया निर्जन-रेगिस्तान में बदल जाएगी. मेरी इस बात को पढ़कर मेरे कुछ साहित्यिक-मित्र नाराज हो सकते हैं लेकिन मुझे इसकी कोई परवाह नहीं. मैं जब से फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप्प जैसे सोशल मीडिया में सक्रिय हुआ हूं, यह बात बड़े शिद्दत से महसूस कर रहा हूं कि इन प्लेटफॉर्मों पर मेरे सो-कॉल्ड (तथाकथित) साहित्यिक मित्र केवल अपनी रचनाएं सम्मानपत्र, मेडल के फोटो पोस्ट करेंगे या फिर अपने जन्म-विवाह की वर्षगांठ की घोषणा या फिर शनि जयंती, शबरी जयंती, नारद जयंती, कागभुसुंडी जयंती, राजाधिजराज निषादराज की जयंती, कृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी, महाशिवरात्रि, अनंत चतुर्दशी, दीपावली-दशहरा की शुभकामना संदेशों के पोस्ट ही करते पाए जाते हैं. मुझे लगता है इन सो-कॉल्ड साहित्यकारों को हिंदी साहित्य जगत के दिग्गज साहित्यकारों के नाम भी पता नहीं है शायद. अगर पता होता तो वे उनकी जयंती-पुण्यतिथि पर भी उन्हें स्मरण करते हुए भी कोई पोस्ट-लेख जरूर लिखते. साहित्यक लोगों की ओर से ही पूर्ववर्ती दिग्गज साहित्यकारों के प्रति इस उदासीनता से पता लगता है कि ये लोग किस कदर सामाजिक उदासीनता और आत्ममुग्धता के शिकार हैं.
मुझे उस वक्त बहुत बुरा लगता है जब अखबारों में किसी क्रिकेटर, फिल्म अभिनेता या राजनेताओं की मौत, पुण्यतिथि, जयंती या जन्मदिवस पर तो आधा-आधा या एक-एक पेज तक की पाठ्यसामग्री छपती है लेकिन किसी साहित्यकार पर नहीं. हाल ही में जब 13 नवंबर को मेरे प्रिय कवि गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ की जयंती पर अखबार तो अखबार, सोशल मीडिया पर भी सन्नाटा पसरा देखा तो अंदर से मैं व्याकुल हो उठा और मेरे मन में आज के सो-काल्ड (तथाकथित) साहित्यकारों के प्रति गहरी वितृष्णा जाग उठी क्योंकि उन्हीं की उदासीनता का ही यह दुष्परिणाम है.
हालांकि इसी बीच जब मैंने आदरणीय डॉ. रामकुमार रामारिया सर जी की एक पोस्ट ‘मुक्तिबोध’ पर फेसबुक में देखा तो मन को थोड़ा सुकून मिला. इस पोस्ट के माध्यम से मेरा सो-काल्ड साहित्यकारों से निवेदन है कि वे सोशल मीडिया पर हमारे अग्रज प्रेरणास्रोत साहित्यिक शख्सियतों को भी स्मरण करते रहें जिससे समाज में साहित्यिक-चेतना को और भी विस्तार मिले.
खैर! मैं मूल विषय से थोड़ा विषयांतर हो गया. मैं इस पोस्ट के माध्यम से मंडला जिले के सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक संगठनों से गुजारिश करना चाहता हूं कि श्याम बैरागी जी की जो हजारों रचनाएं उनकी डायरियों में ही पड़ी हुई हैं, उन्हें पुस्तकाकार देने की दिशा में संवेदनशीलता दिखाएं. बाद में उन पुस्तकों को ‘पुस्तकों के स्वरूप में’ ही डिजिटिलाइज इंटरनेट पर भी डाला जा सकता है. लेकिन पहले पुस्तक के तौर पर प्रकाशित होना जरूरी है. जिला प्रशासन के साथ ही मध्यप्रदेश सरकार से भी निवेदन है कि इस दिशा में कोई सार्थक पहल करे. मुझे पूरा भरोसा है कि भविष्य में जिला प्रशासन बैरागी जी के सम्मान में किसी जिला मुख्यालय में, तहसील मुख्यालय में किसी सभागृह या ऑडिटोरियम का निर्माण उनके नाम पर करे. उनकी जो रचनाएं अब तक किसी भी रूप में प्रकाशित हुई हैं, वे भी कम नहीं हैं. सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए उनके ही रचित और उनकी ही आवाज में 42 आडियो-वीडियो सीडी में 200 से अधिक गीत रिकॉर्ड हो चुके हैं जो अपने आप में ही एक बड़ा रिकॉर्ड है. इसके अलावा अनेकानेक रचनाएं विभिन्न अखबारों और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो चुकी हैं. कई अखबारों में तो आपने स्तंभ-लेखन की सीरीज भी चलाई है.
उनका सर्वाधिक लोकप्रिय गीत ‘गाड़ीवाला आया’ यूट्यूब पर मिलियनों में व्यू पा चुका है. इसके अलावा देश के सभी छोटे-बड़े शहरों में यह गीत रोज सुबह-सुबह सुना जा सकता है. सभी साथी उनके यूट्यूब चैनल Syahi Dil Ki Diary जरूर सब्सक्राइम करें. उनके इस चैनल पर उनके गीतों को सुनने के बाद लाइक जरूर करें और कम से कम एक शेयर तो अवश्य ही करें भाई. इससे चैनल की रीच बढ़ती है. उम्मीद है हमेंं शीघ्र ही किसी नई बॉलीवुड फिल्म में श्याम बैरागी जी का लिखित कोई नया गीत सुनने को मिलेगा.
चित्र परिचय : क्रमश: बाएं से अभिनेत्री कृति सेनन, अभिनेता वरुण धवन, हमारे प्रिय जनकवि श्याम बैरागी और उनकी जीवनसंगिनी गायत्री बैरागी.

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 453 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Muhabhat guljar h,
Muhabhat guljar h,
Sakshi Tripathi
भाईदूज
भाईदूज
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
जंगल ही ना रहे तो फिर सोचो हम क्या हो जाएंगे
जंगल ही ना रहे तो फिर सोचो हम क्या हो जाएंगे
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
सत्य क्या है?
सत्य क्या है?
Vandna thakur
अनेकता में एकता 🇮🇳🇮🇳
अनेकता में एकता 🇮🇳🇮🇳
Madhuri Markandy
मनुष्य की महत्ता
मनुष्य की महत्ता
ओंकार मिश्र
"बयां"
Dr. Kishan tandon kranti
इस धरातल के ताप का नियंत्रण शैवाल,पेड़ पौधे और समन्दर करते ह
इस धरातल के ताप का नियंत्रण शैवाल,पेड़ पौधे और समन्दर करते ह
Rj Anand Prajapati
मैं फक्र से कहती हू
मैं फक्र से कहती हू
Naushaba Suriya
खेत -खलिहान
खेत -खलिहान
नाथ सोनांचली
गोर चराने का मज़ा, लहसुन चटनी साथ
गोर चराने का मज़ा, लहसुन चटनी साथ
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
पिता
पिता
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
*अब कब चंदा दूर, गर्व है इसरो अपना(कुंडलिया)*
*अब कब चंदा दूर, गर्व है इसरो अपना(कुंडलिया)*
Ravi Prakash
फटे रह गए मुंह दुनिया के, फटी रह गईं आंखें दंग।
फटे रह गए मुंह दुनिया के, फटी रह गईं आंखें दंग।
*Author प्रणय प्रभात*
शादी की उम्र नहीं यह इनकी
शादी की उम्र नहीं यह इनकी
gurudeenverma198
(1) मैं जिन्दगी हूँ !
(1) मैं जिन्दगी हूँ !
Kishore Nigam
क्या कहें?
क्या कहें?
Srishty Bansal
शौक करने की उम्र मे
शौक करने की उम्र मे
KAJAL NAGAR
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
2812. *पूर्णिका*
2812. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Being with and believe with, are two pillars of relationships
Being with and believe with, are two pillars of relationships
Sanjay ' शून्य'
चयन
चयन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझे
युगों की नींद से झकझोर कर जगा दो मुझे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
"लिखना कुछ जोखिम का काम भी है और सिर्फ ईमानदारी अपने आप में
Dr MusafiR BaithA
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Tarun Singh Pawar
तुम मेरा साथ दो
तुम मेरा साथ दो
Surya Barman
फिर से आंखों ने
फिर से आंखों ने
Dr fauzia Naseem shad
माँ (खड़ी हूँ मैं बुलंदी पर मगर आधार तुम हो माँ)
माँ (खड़ी हूँ मैं बुलंदी पर मगर आधार तुम हो माँ)
Dr Archana Gupta
.........,
.........,
शेखर सिंह
शादी होते पापड़ ई बेलल जाला
शादी होते पापड़ ई बेलल जाला
आकाश महेशपुरी
Loading...