श्याम तेरी बंसी
मोरपंख से मुकुट बना, जिसमें सारे रंग समाए,
चौसठ कला, रूप त्रयोदश, विष्णु के पूर्णावतार कहाये।
अदभुत इंद्रधनुष अद्वैत, पांव तले, शुभ चिन्ह दिखाए,
अजर अमर अविनाशी कान्हा, मुख ब्रह्मांड दिखाए।
ज्यों सरिता का गहन जल, रंग है अजब दिखाए,
मंद मंद मुस्कान सांवरे मुख पर खूब सुहाए।
हर लें मोहन सबके संकट, ऐसा अनुपम चक्र चलायें,
पिए जो मीरा विष का प्याला, अमृत उसे बनाये।
देवकी नंदन, लाल यशोदा, कभी नारायण कहलाये,
परमपुरुष वासुदेव नंद के, प्रिय नंदन कहलाये।
ग्वाल-बाल संग माखन, मिश्री, गैयन खूब चरायें
छूप-छुप कर घर-घर छींके से माखन खूब चुरायें।
राधा, मीरा की प्रेम-भक्ति, जन-जन सदा सुनाए,
कनिष्ठिका गोवर्धनधारी, इंद्र प्रकोप बचाये।
तन पीतांबर, अधर मुरली, गल वैजयंती हार सुहाए,
श्याम तेरी बंसी जब बाजे, वृषभान कुमारी नाच दिखाए।
रचयिता–
डॉ नीरजा मेहता ‘कमलिनी’