श्याम जी
नाग की सवारी करे राधा संग पानी भरे
नर तन नारी का जो रूप धरे श्याम जी ।
बाँसुरी की तान पर नाचें मोर गाय खर
कलयुगी अवतार एक कृष्ण नाम जी ।
कबीर के दोहे में वो मीरा के भजन में वो
सुर नर मुनि जन भजे राधेश्याम जी ।
भाद्रपद मासारंभ रोहिणी का तेज ले के
दिन रात्रि बारा बजे आए प्रभु धाम जी ।
पांडवों को हारा देख नीर बहा यमुना का
कौरवों की छाती लाँघ और संहार कर ।
रज चरणों की चख, प्रल्हाद सा भाव रख
सांवले से रंग पर यथार्थ वार कर ।
विकल चंचल मन माटी मोल यह तन
चल सत्य की डगर जग उद्धार कर ।
उर वेदना अथक रख न तू कोई शक
हृदय की तड़पन प्रभु स्वीकार कर ।